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14 November, 2020

अथर्ववेद - उपदेश

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। 
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:। 
- अथर्ववेद 

अर्थात: जहाँ स्त्रियों का आदर किया जाता है, वहाँ देवता निवास करते हैं। जहाँ इनका अनादर होता है, वहाँ सारे काम निष्फल होते हैं। 

सहृदयं सांमनस्यमविद्वेषं कृणोमि व:। 
अन्यो अन्यभिहर्यत वत्सं जातमिवाघन्या। 
 - अथर्ववेद 

अर्थात: हे मनुष्यों, मैं तुम्हें एक ह्रदयता,एक मन और निर्वेरता का उपदेश देता हूं। एक दूसरे से प्यार करें, ठीक वैसे जैसे न मारने योग्य गौ अपने उत्पन्न हुए बछड़े को प्यार करती है। वैसे ही अन्य सभी जीवों से भी प्रेम करें। अगर सभी मनुष्य एक दूसरे से प्रेम करें और एक दूसरे को समझें, तो यह संसार द्वेष रहित हो जाएगा। 

यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः। 
एवा मे प्राण मा विभेः। 
- अथर्ववेद 

अर्थात: जिस प्रकार आकाश एवं पृथ्वी न भयग्रस्त होते हैं और न इनका नाश होता है, उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम भी भयमुक्त रहो। अर्थात व्यक्ति को कभी किसी भी प्रकार का भय नहीं पालना चाहिए। भय से जहां शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं वहीं मानसिक रोग भी जन्मते हैं। डरे हुए व्यक्ति का कभी किसी भी प्रकार का विकास नहीं होता। संयम के साथ निर्भिकता होना जरूरी है। डर सिर्फ ईश्वर का रखें। 

मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्‌, मा स्वसारमुत स्वसा। 
सम्यञ्च: सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया। 
- अथर्ववेद 

अर्थात: भाई, भाई से द्वेष न करें, बहन, बहन से द्वेष न करें, समान गति से एक-दूसरे का आदर- सम्मान करते हुए परस्पर मिल-जुलकर कर्मों को करने वाले होकर अथवा एकमत से प्रत्येक कार्य करने वाले होकर भद्रभाव से परिपूर्ण होकर संभाषण करें। 

येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । 
ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।। 

अर्थात: जिस मनुष्य ने किसी भी प्रकार से विद्या अध्ययन नहीं किया, न ही उसने व्रत और तप किया, थोड़ा बहुत अन्न-वस्त्र-धन या विद्या दान नहीं दिया, न उसमें किसी भी प्राकार का ज्ञान है, न शील है, न गुण है और न धर्म है। ऐसे मनुष्य इस धरती पर भार होते हैं। मनुष्य रूप में होते हुए भी पशु के समान जीवन व्यतीत करते हैं।
  
 चरक संहिता का कहना है कि अथर्ववेद में इन विषयों के मंत्र हैं- स्वस्तययन, बलि, मंगल, होम, नियम, प्रायश्चित और उपवास। ये समस्त विषय आयुर्वेद के हैं, अतः हम निश्चयपूर्वक, यह कह सकते हैं कि अथर्ववेद में चिकित्सा का वर्णन है और अथर्ववेद और आयुर्वेद का घनिष्ट सम्बन्ध है।