मध्य में जो विराजमान हैं, उन्हें ही नारायण कहा जाता है जो कि भगवान श्री विष्णु के सत्य गुण के रूप है। जिन्हे सत्यनारायण भी कहा जाता है। वैसे सभी भगवान श्री विष्णु के ही रूप हैं। आइए जानते हैं:
ऊँ श्री गणेशाय नम: ऊँ परमात्मने नम: ✍🏿
हर छोटे बडे़ शरीर में जीवन का कारण जो जीवात्माँ हैं, वो नारायण स्वरुप ही हैं।
पर लगभग लगभग हर व्यक्ती ये बात भूला हुआ है।
जो उसके दु:ख का कारण है।
इस अनन्त ब्रह्माँण्ड़ को आप एक ऐसा अनन्त शरीर जानो जिसकी कोई आकृती नहीं बनाई जा सकती इसलिए वो परब्रह्मँ निराकार कहा जाता है।
वही हैं शिवजी, शिवजी तमोगुँण को धारण करके स्वयम् को अहँकार जगत के रुप में अन्तरिक्ष स्वरुप हो प्रकट हैं, जिस अन्तरिक्ष में ब्रह्मँदेव हर ब्रह्माँण्ड़ को रचते हैं।
ब्रह्माँ जी उसी परमात्माँ स्वरुप विष्णूजी के बुद्धी हैं, जिससे संसार के हर जीवात्माँ को बुद्धी मिलती है।
शिवजी भी उसी विष्णुजी के स्वरुप हैं जिन्हें हम संहारकर्ता कहते हैं।
उनके पुर्ण स्वरुप के दर्शन करें:
भगवान विष्णु जी जीवात्माँओं के परब्रह्मँ स्वरुप हैं, इसलिए उन्हें क्षीर सागर में लेटे हुए योगनिद्रायुक्त दिखाया जाता है, वो जीवात्माँ के प्रतीक परमात्माँ हैं, इसलिए अपनी ही बुद्धी व अहँकार के रचना को देखते रहते हैं, और जब जहाँ धर्म की हानि होती है, वहाँ प्रकट होते हैं।
पर श्री हरि: तक पहुँचने के लिए व्यक्ती को बाहर नहीं अन्दर देखना चाहिए क्युँकि नारायण ते परमधाम का मार्ग जीव के हृदयकमल में स्थित जीव के अन्दर आत्मा रुप से है। उसे क्षीर सागर कहते हैं, इतना जान लेने पर फिर और कुछ जानने को शेष नहीं रहता।
एक छोटी सी कहानी है: click here