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28 August, 2014

सुसाइड नोट


‘इस शहर का माहौल पूरी तरह बिगड़ गया है। यहां बहुत आवारा लड़के लड़कियों पर लाइन मारने के लिए घूमते रहते हैं। इसी तरह हमारे पीछे हर 2-3 दिन में कोई न कोई लड़का आता था, लेकिन हम तो उन लड़कों को जानते भी नहीं थे। 

फिर भी वो तो हमारे पीछे घूमते रहते थे और घर तक आ जाते थे। इस वजह से दुनिया वाले अफवाहें उड़ाते हैं। शहर की पुलिस ऐसे आवारा लड़कों के प्रति बहुत सख्त हो जाए वरना हमारी तरह पता नहीं कितनी लड़की और परेशान होकर आत्महत्या करेंगी।’

ये निकिता और मधु के अंतिम शब्द हैं, जो उन्होंने अपने 5-6 पेज के सुसाइड नोट में लिखे हैं। आंखों में बड़ी उम्मीदों और दिल में कामयाबी के सपने पाले इन दोनों छात्राओं ने शहर के माहौल और पुलिस व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा दिया है।

जीने की चाह, आसमां छूने की दीवानगी, अपनों का लगाव और उनके लिए चिंता सुसाइड नोट में भी मरी नहीं, लेकिन माहौल और पुलिस व्यवस्था ने दो होनहार छात्राओं को हरा दिया।

निकिता पढ़ाई में बहुत होशियार थी और 10वीं में उसने 98 प्रतिशत अंक हासिल किए थे। वहीं मधु भी पढ़ाई के दम पर ही अपने सपनों का पूरा करने में जुटी थी।

लेकिन उनके सपनों को दो तीन माह पहले लाढ़ोत के एक युवक ने ग्रहण लगाना शुरू कर दिया। अपने सपनों को यूं बिखरते देख उन्होंने न जाने कितनी बार दोबारा नई शुरुआत करने की कोशिश की होंगी, न जाने नई सुबह उम्मीद के साथ शुरू की होगी। 

हर बार जिंदगी व्यवस्था की नाकामी से हारती चली गई और अंत में मौत के आगोश में सो गई।

निकिता ने लिखा है कि मैंने भी हमेशा अपने पेरेंट्स का नाम ऊंचा करने के लिए कड़ी मेहनत की है। हमेशा चाहा है कि कभी भी मैं अपने पेरेंट्स का सिर न झुकने दूं। 

मेरा हमेशा से सपना था कि मैं अपने दम पर अमेरिका जाऊं और मम्मी-पापा को भी वहां की सैर कराऊं। मैं ये चाहती थी कि मेरे पेरेंट्स जहां भी जाएं, उन्हें वहां मेरे नाम व मेरी अच्छाइयों की वजह से जाना जाए।

मैंने उसी की तैयारी में सारा ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित कर रखा था ताकि अमेरिका जाने का सपना पूरा कर सकूं। लेकिन पिछले 2-3 महीने से इतना तनाव बढ़ गया कि पढ़ाई में भी कम ध्यान लग पा रहा था।

टेंशन की वजह से बीमार भी रहने लगी थी। टेंशन ये थी कि रोज कोई न कोई अनजान लड़का कुछ-कुछ कहता। घर तक पीछे आता। इससे दुनिया वाले मेरे और मधु के बारे में पता नहीं क्या-क्या गलत सोचेंगे। 

एकेडमी वाले क्या सोचेंगे। इस टेंशन से ही हमारा दिमाग भरा रहता था। इस टेंशन की वजह से शायद हम दिन रात एक करने के बाद भी अच्छा स्कोर तो कर लेते पर टॉप नहीं कर पाते।

कीर्ति के लिए बर्थडे पर मैंने टी शर्ट देने की सोची थी और विपांशु के लिए घड़ी। लेकिन अब मैं नहीं हूं। इसलिए दराज में रखे पर्स से रुपये निकाल कर कीर्ति के लिए टीशर्ट ले देना और विपांशु को मेरी ही घड़ी ठीक कराकर दे देना।

ऐसे में उसके एग्जाम व इंटरव्यू के दौरान मेरी बेस्ट विशेज उसके साथ रहेंगी। वहीं कीर्ति उस टीशर्ट को स्पेशल दिनों में पहने। यह उसके लिए लकी साबित होगी। 

एंड डोंट वरी, मेरी दुआएं हमेशा आपके साथ रहेंगी। मैं ना होकर भी आप सबके साथ हूं। आप लोग मुझे बस दिल से याद करना, मैं सपनों में आ जाऊंगी। आप लोगों के साथ कभी कुछ बुरा नहीं होगा। 

निकिता ने अपने अंतिम पत्र में अपनी मां से गुजारिश की है कि ‘मां, आप और संजय पहले की तरह बात करना शुरू कर दें। ये मेरी पहले भी इच्छा थी कि आप दोनों मेरे लिए बात करना शुरू कर दो।

लेकिन अब मैं नहीं हूं तो मेरी इच्छा भी है और प्रार्थना भी कि आप दोनों अभी से बात करना शुरू कर दें। मुझे उम्मीद है कि आप मुझे निराश नहीं करोगी। भगवान आप जैसे पेरेंट्स, भाई, बहन, कजन, दोस्त सबको दें।

उसने अपनी मां से कहा है कि उसके भाई-बहन कीर्ति और विपांशु को हमेशा दोस्तों की तरह रखना, ताकि वे अपनी कोई भी बात शेयर करने में हिचकिचाहट न करें।

क्योंकि मैं नहीं चाहती कि वो भी मेरी तरह दिमाग में टेंशन पालकर सुसाइड करने की सोचें। मम्मी आज मेरा सोमवार का 14वां व्रत है, जो मैं पूरा नहीं कर पाई।

इसलिए आप मेरे नाम से 14वां, 15वां, 16वां और 17वां सोमवार का व्रत कर उद्यापन भी कर दें। मेरी अर्थी को कंधा मेरे राजा, विपांशु, संजय और शीलू भैया दें। अभिषेक, संजय, विपांशु, राजा, शीलू और जीतू ये सभी मेरे अच्छे भाई के साथ-साथ मेरे टीचर भी रहे हैं।


Date: Thursday, August 28, 2014
Link:
http://www.amarujala.com/feature/crime-bureau/suside-note-of-nikita-and-madhu-hindi-news-tm/?page=0

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