कलयुग अवश्य है, किन्तु
सत्य की रक्षा करने हेतु किया गया कोई भी बुरा कर्म कभी पाप नहीं कहलाता है।
हमारे वेदों- उपनिषदों में भी कहा गया है:
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ।।
अर्थात: ‘‘जो पुरूष धर्म का नाश करता है, उसी का नाश धर्म कर देता है, और जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी धर्म भी रक्षा करता है । इसलिए मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले, इस भय से धर्म का हनन अर्थात् त्याग कभी नहीं करना चाहिए ।’’
अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च:।
र्अथात: अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है और धर्म की रक्षा हेतु हिंसा उससे भी श्रेष्ठ है।
No comments :
Post a Comment