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03 August, 2021

सूर्य पुत्र कर्ण की सम्पूर्ण कथा

सूर्यपुत्र कर्ण, महारथी कर्ण, दानवीर कर्ण, सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कर्ण, राधेय, वसुषेण ऐसे कितने ही नामों से पुकारा जाने वाले इस महान यौद्धा के महाभारत के युग में जन्म के साथ ही दुर्भाग्य ने अन्त तक उसका पीछा नहीं छोड़ा। नियती कदम कदम पर उसके साथ क्रूर खेल खेलती रही। जिस कारण धर्म के पक्ष में खड़े होने वाले इस महारथी को धर्म विरुद्ध युद्ध लड़ने के लिए विवश होना पड़ा। नियती ने कदम कदम पर उसे उस अपराध का दण्ड दिया जो उसने किया ही नहीं था जिसमें उसका कोई कसूर नहीं था। शायद महाभारत का कोई सबसे वीर, शक्तिशाली तथा कारुणिक पात्र यही है।

 

 
 महाभारत की कुछ व्याख्यायों के अनुसार, यही वह कृत्य था जिसने भली प्रकार से ये प्रमाणित कर दिया की कर्ण युद्ध में अधर्म के पक्ष में लड़ रहा है और इस कृत्य के कारण उसके इस दुर्भाग्य का भी निर्धारण हो गया की वह भी अर्जुन द्वारा इसी प्रकार मारा जाएगा जब वह शस्त्रास्त्र हीन और रथहीन हो और उसकी पीठ अर्जुन की ओर हो। कर्ण के पास सत्रहवें दिन के युद्ध में अर्जुन का वध करने का पूरा अवसर था लेकिन युद्ध नियमों का पालन करते हुए उसने अर्जुन पर बाण नहीं चलाया क्योंकि तब तक सूर्यदेव अस्त हो चुके थे।
 

 
 
 
 
 
 
 

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