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14 November, 2020

अथर्ववेद - उपदेश

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। 
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:। 
- अथर्ववेद 

अर्थात: जहाँ स्त्रियों का आदर किया जाता है, वहाँ देवता निवास करते हैं। जहाँ इनका अनादर होता है, वहाँ सारे काम निष्फल होते हैं। 

सहृदयं सांमनस्यमविद्वेषं कृणोमि व:। 
अन्यो अन्यभिहर्यत वत्सं जातमिवाघन्या। 
 - अथर्ववेद 

अर्थात: हे मनुष्यों, मैं तुम्हें एक ह्रदयता,एक मन और निर्वेरता का उपदेश देता हूं। एक दूसरे से प्यार करें, ठीक वैसे जैसे न मारने योग्य गौ अपने उत्पन्न हुए बछड़े को प्यार करती है। वैसे ही अन्य सभी जीवों से भी प्रेम करें। अगर सभी मनुष्य एक दूसरे से प्रेम करें और एक दूसरे को समझें, तो यह संसार द्वेष रहित हो जाएगा। 

यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः। 
एवा मे प्राण मा विभेः। 
- अथर्ववेद 

अर्थात: जिस प्रकार आकाश एवं पृथ्वी न भयग्रस्त होते हैं और न इनका नाश होता है, उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम भी भयमुक्त रहो। अर्थात व्यक्ति को कभी किसी भी प्रकार का भय नहीं पालना चाहिए। भय से जहां शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं वहीं मानसिक रोग भी जन्मते हैं। डरे हुए व्यक्ति का कभी किसी भी प्रकार का विकास नहीं होता। संयम के साथ निर्भिकता होना जरूरी है। डर सिर्फ ईश्वर का रखें। 

मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्‌, मा स्वसारमुत स्वसा। 
सम्यञ्च: सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया। 
- अथर्ववेद 

अर्थात: भाई, भाई से द्वेष न करें, बहन, बहन से द्वेष न करें, समान गति से एक-दूसरे का आदर- सम्मान करते हुए परस्पर मिल-जुलकर कर्मों को करने वाले होकर अथवा एकमत से प्रत्येक कार्य करने वाले होकर भद्रभाव से परिपूर्ण होकर संभाषण करें। 

येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । 
ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।। 

अर्थात: जिस मनुष्य ने किसी भी प्रकार से विद्या अध्ययन नहीं किया, न ही उसने व्रत और तप किया, थोड़ा बहुत अन्न-वस्त्र-धन या विद्या दान नहीं दिया, न उसमें किसी भी प्राकार का ज्ञान है, न शील है, न गुण है और न धर्म है। ऐसे मनुष्य इस धरती पर भार होते हैं। मनुष्य रूप में होते हुए भी पशु के समान जीवन व्यतीत करते हैं।
  
 चरक संहिता का कहना है कि अथर्ववेद में इन विषयों के मंत्र हैं- स्वस्तययन, बलि, मंगल, होम, नियम, प्रायश्चित और उपवास। ये समस्त विषय आयुर्वेद के हैं, अतः हम निश्चयपूर्वक, यह कह सकते हैं कि अथर्ववेद में चिकित्सा का वर्णन है और अथर्ववेद और आयुर्वेद का घनिष्ट सम्बन्ध है।

18 October, 2020

Kshatriya - A Warrior

वेदों तथा ब्राह्मणों में क्षत्रिय शब्द राजवर्ग के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। प्राचीन काल में शासक वर्ग,ब्राह्मण तथा अन्य समुदायों की मदद से शासन चलाता था। इसलेख में संस्कृत शब्द 'क्षत्रिय', वैदिक काल के समाज के सन्दर्भ में वर्णित है जब पूरा समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र नामक चार वर्गों में विभक्त था।



राजपूतों की वंशावली :


“दस रवि से दस चन्द्र से, बारह ऋषिज प्रमाण,

चार हुतासन सों भये , कुल छत्तिस वंश प्रमाण

भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान

चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण.”


अर्थ:- दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय, दस चन्द्र वंशीय, बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है, बाद में भौमवंश. , नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग- अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है।


सूर्य वंश की दस शाखायें:-


१. कछवाह


२. राठौड


३. बडगूजर


४. सिकरवार


५. सिसोदिया


६.गहलोत


७.गौर


८.गहलबार


९.रेकबार


१०.जुनने


चन्द्र वंश की दस शाखायें:-


१.जादौन


२.भाटी


३.तोमर


४.चन्देल


५.छोंकर


६.होंड


७.पुण्डीर


८.कटैरिया


९.स्वांगवंश


१०.वैस


अग्निवंश की चार शाखायें:-


१.चौहान


२.सोलंकी


३.परिहार


४.परमार.


ऋषिवंश की बारह शाखायें:-


१.सेंगर


२.दीक्षित


३.दायमा


४.गौतम


५.अनवार (राजा जनक के वंशज)


६.विसेन


७.करछुल



८.हय


९.अबकू तबकू


१०.कठोक्स


११.द्लेला


१२.बुन्देला


चौहान वंश की चौबीस शाखायें:-


१.हाडा


२.खींची


३.सोनीगारा


४.पाविया


५.पुरबिया


६.संचौरा


७.मेलवाल


८.भदौरिया


९.निर्वाण


१०.मलानी


११.धुरा


१२.मडरेवा


१३.सनीखेची


१४.वारेछा


१५.पसेरिया


१६.बालेछा


१७.रूसिया


१८.चांदा


१९.निकूम


२०.भावर


२१.छछेरिया


२२.उजवानिया


२३.देवडा


२४.बनकर.


क्षत्रिय जातियो की सूची


(क्रमांक/ नाम/ गोत्र/वंश / स्थान और जिला)


१.सूर्यवंशी /भारद्वाज/सूर्य /बुलन्दशहर / आगरा , मेरठ, अलीगढ


२.गहलोत / बैजवापेण/सूर्य /मथुरा, कानपुर, और पूर्वी जिले


३.सिसोदिया /बैजवापेड/ सूर्य /महाराणा उदयपुर स्टेट


४.कछवाहा/ मानव/सूर्य /महाराजा जयपुर और ग्वालियर राज्य


५.राठोड/ कश्यप/ सूर्य / जोधपुर, बीकानेर और पूर्व और मालवा


६.सोमवंशी/अत्रय/ चन्द/प्रतापगढ और जिला हरदोई


७.यदुवंशी/ अत्रय/ चन्दराजकरौली, राजपूताने में


८.भाटी / अत्रय/ जादौनमहारlजा जैसलमेर. , राजपूताना


९.जाडेचा/ अत्रय/ यदुवंशीमहाराजा कच्छ, भुज


१०.जादवा/अत्रय/ जादौनशाखा अवा. कोटला , ऊमरगढ, आगरा


११.तोमर/ व्याघ्र/चन्दपाटन के राव, तंवरघार, जिला ग्वालियर


१२.कटियार/ व्याघ्र /तोंवरधरमपुर का राज और हरदोई


१३.पालीवार/व्याघ्र/ तोंवरगोरखपुर/


१४.परिहार/ कौशल्य/अग्नि /इतिहास में जानना चाहिये


१५.तखी/ कौशल्य/ परिहारपंजाब, कांगडा , जालंधर, जम्मू में


१६.पंवार/ वशिष्ठ /अग्नि /मालवा, मेवाड, धौलपुर, पूर्व मे बलिया


१७.सोलंकी/ भारद्वाज/ अग्नि /राजपूताना , मालवा सोरों, जिला एटा


१८.चौहान/ वत्स /अग्नि / राजपूताना पूर्व और सर्वत्र


१९.हाडा/ वत्स / चौहान / कोटा , बूंदी और हाडौती देश


२०.खींची / वत्स/ चौहानखींचीवाडा , मालवा , ग्वालियर


२१.भदौरिया/ वत्स / चौहान/नौगंवां , पारना, आगरा, इटावा ,गालियर


२२.देवडा/वत्स/चौहान /राजपूताना, सिरोही राज


२३.शम्भरी /वत्स / चौहाननीमराणा , रानी का रायपुर, पंजाब


२४.बच्छगोत्री/ वत्स/ चौहानप्रतापगढ, सुल्तानपुर


२५.राजकुमार/वत्स / चौहान/दियरा , कुडवार, फ़तेहपुर जिला


२६.पवैया /वत्स / चौहान /ग्वालियर


२७.गौर, गौड/ भारद्वाज / सूर्य/शिवगढ, रायबरेली, कानपुर, लखनऊ


२८.वैस/ भारद्वाज/चन्द्र /उन्नाव, रायबरेली , मैनपुरी पूर्व में


२९.गेहरवार/ कश्यप / सूर्य / माडा , हरदोई, उन्नाव, बांदा पूर्व


३०.सेंगर/ गौतम/ ब्रह्मक्षत्रिय/जगम्बनपुर, भरेह, इटावा , जालौन,


३१.कनपुरिया/भारद्वाज / ब्रह्मक्षत्रिय/पूर्व में राजा अवध के जिलों में हैं


३२.बिसैन/ वत्स / ब्रह्मक्षत्रिय / गोरखपुर ,गोंडा , प्रतापगढ में हैं


३३.निकुम्भ/ वशिष्ठ/सूर्य/गोरखपुर, आजमगढ, हरदोई, जौनपुर


३४.सिरसेत/भारद्वाज /सूर्य/गाजीपुर, बस्ती, गोरखपुर


३५.कटहरिया/वशिष्ठ्या भारद्वाज / सूर्य/ बरेली, बंदायूं, मुरादाबाद, शहाजहांपुर


३६.वाच्छिल/अत्रय/ वच्छिलचन्द्र/ मथुरा, बुलन्दशहर, शाहजहांपुर


३७.बढगूजर/वशिष्ठ/सूर्य/अनूपशहर, एटा , अलीगढ, मैनपुरी , मुरादाबाद , हिसार, गुडगांव, जयपुर


३८.झाला/मरीच /कश्यप/चन्द्र/धागधरा , मेवाड, झालावाड, कोटा


३९.गौतम/गौतम/ ब्रह्मक्षत्रिय/ राजा अर्गल , फ़तेहपुर


४०.रैकवार/ भारद्वाज/ सूर्य/ बहरायच, सीतापुर, बाराबंकी


४१.करचुल /हैहय/कृष्णात्रेय/चन्द्र/बलिया ,फ़ैजाबाद, अवध


४२.चन्देल/चान्द्रायन/चन्द्रवंशी/गिद्धौर, कानपुर, फ़र्रुखाबाद, बुन्देलखंड, पंजाब, गुजरात


४३.जनवार/कौशल्य/सोलंकी शाखा/बलरामपुर, अवध के जिलों में


४४.बहरेलिया / भारद्वाज/ वैस की गोद/ सिसोदिया/रायबरेली, बाराबंकी


४५.दीत्तत/कश्यप/सूर्यवंश की शाखा/ उन्नाव, बस्ती, प्रतापगढ ,जौनपुर , रायबरेली, बांदा


४६.सिलार/ शौनिक/चन्द्र/ सूरत , राजपूतानी


४७.सिकरवार/ भारद्वाज/ बढगूजर/ ग्वालियर, आगरा और उत्तरप्रदेश में


४८.सुरवार/ गर्ग/ सूर्य /कठियावाड में


४९.सुर्वैया/वशिष्ठ/यदुवंश/काठियावाड


५०.मोरी/ ब्रह्मगौतम/सूर्य/मथुरा, आगरा, धौलपुर


५१.टांक (तत्तक)/शौनिक / नागवंश,मैनपुरी और पंजाब


५२.गुप्त/गार्ग्य/चन्द्र/अब इस वंश का पता नही है


५३.कौशिक/कौशिक/चन्द्र/ बलिया, आजमगढ, गोरखपुर


५४.भृगुवंशी/भार्गव/चन्द्र/वनारस, बलिया , आजमगढ, गोरखपुर


५५.गर्गवंशी/गर्ग ब्रह्


राजपूत का मतलब – क्षत्रिय


राजपूत इतिहास – राजपूत का मतलब


राजपूतों के लिये यह कहा जाता है कि वह केवल राजकुल में ही पैदा हुआ होगा, इसलिये ही राजपूत नाम चलाl


लेकिन राजा के कुल मे तो कितने ही लोग और जातियां पैदा हुई है सभी को राजपूत कहा जाता!


यह राजपूत शब्द राजकुल मे पैदा होने से नही बल्कि राजा जैसा बाना रखने और राजा जैसा धर्म “सर्व जन हिताय,सर्व जन सुखाय” का रखने से राजपूत शब्द की उत्पत्ति हुयी।

गौतम बुद्ध का जन्म एक क्षत्रिय शाक्य कुल में हुआ था।

Lord Parsurama the Kshatriya-slayer


Kshatriya - a warrior


Rama the Kshatriya














09 October, 2020

Maha Mrityunjaya Mantra

Mahamrityunjaya Mantra – Know significance, benefits and meaning of the mantra

Shiva is known as God of Death. Death comes in many forms. This mantra helps to protect from death and destruction in every form. 

According to another story, this mantra was known to Mata Sati. One time Her father king Daksha got mad at moon (chandra) and cursed it. Moon was in bad shape as a result and was hurting. Mata Sati gave the mantra to moon, who found peace due to this and then Shivji picked it and put it in the hair. 


Mantra:

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ।।


Meaning:

We worship the three-eyed One, who is fragrant and who nourishes all.

Like the fruit falls off from the bondage of the stem, may we be liberated from death, from mortality.


भावार्थ - हम भगवान शिवशंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो संपूर्ण जगत का पालन पोषण अपनी कृपादृष्टि से कर रहे हैं। उनसे हमारी प्रार्थना है कि वह हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें। 


This mantra is the Mahamritunjaya Mantra. It was started by Rishi Markandeya and comes in Yajurved the first time as a part of Namakkam Chamakaam, that is dedicated to Shivji.


SIGNIFICANCE OF THE MANTRA:

It helps healing all the realms of human existence: human body, mind, and soul. The fact that it is a 'moksha' mantra makes it a powerful mantra for longevity and healthy life.










02 October, 2020

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे।

 

छोडो मेहँदी खडक संभालो,

खुद ही अपना चीर बचा लो।

द्यूत बिछाये बैठे शकुनि,

मस्तक सब बिक जायेंगे।

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे।


कब तक आस लगाओगी तुम,

बिक़े हुए अखबारों से।

कैसी रक्षा मांग रही हो,

दुशासन दरबारों से।

स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं,

वे क्या लाज बचायेंगे।

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंग।


कल तक केवल अँधा राजा,

अब गूंगा बहरा भी है।

होठ सी दिए हैं जनता के,

कानों पर पहरा भी है।

तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे,

किसको क्या समझायेंगे?

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे।


- पुष्यमित्र उपाध्याय






17 August, 2020

कलयुग अवश्य है।

कलयुग अवश्य है, किन्तु

सत्य की रक्षा करने हेतु किया गया कोई भी बुरा कर्म कभी पाप नहीं कहलाता है।


हमारे वेदों- उपनिषदों में भी कहा गया है:


धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः । 

तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ।। 

अर्थात: ‘‘जो पुरूष धर्म का नाश करता है, उसी का नाश धर्म कर देता है, और जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी धर्म भी रक्षा करता है । इसलिए मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले, इस भय से धर्म का हनन अर्थात् त्याग कभी नहीं करना चाहिए ।’’


अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च:।

र्अथात: अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है और धर्म की रक्षा हेतु हिंसा उससे भी श्रेष्ठ है।




11 July, 2020

मर्यादा पुरुषोत्तम


मर्यादा पुरुषोत्तम



हमारे देश के लोग श्रीराम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहते हैं। अर्थात वह मनुष्य जो मर्यादा बना सकता है। उन्होंने मानव मात्र के लिए मर्यादा पालन का जो आदर्श प्रस्तुत किया वह संसार के इतिहास में कहीं और नहीं मिल सकता।

- उन्होंने अपना पहला आदर्श आज्ञाकारी पुत्र के रूप में प्रस्तुत किया।

- दूसरा आदर्श उन्होंने एक आदर्श भाई का प्रस्तुत किया।

- तीसरा आदर्श उन्होंने आदर्श पति का प्रस्तुत किया।

सबसे बड़ी बात यह है कि वह एक आदर्श राजा थे। आज भी लोग रामराज्य की कामना करते हैं। राज्य तो था ही राजा के लिए किंतु श्रीराम ने राजा का जो आदर्श प्रस्तुत किया उसे आज तक कोई भुला नहीं सकता। आज समस्त संसार राम राज्य की कामना और अभिलाषा रखता है। महात्मा गांधी भी अपने देश में राम राज्य की स्थापना करना चाहते थे। 

12 June, 2020

सत्यनारायण भगवान


मध्य में जो विराजमान हैं, उन्हें ही नारायण कहा जाता है जो कि भगवान श्री विष्णु के सत्य गुण के रूप है। जिन्हे सत्यनारायण भी कहा जाता है। वैसे सभी भगवान श्री विष्णु के ही रूप हैं। आइए जानते हैं:

ऊँ श्री गणेशाय नम:  ऊँ परमात्मने नम: ✍🏿

हर छोटे बडे़ शरीर में जीवन का कारण जो जीवात्माँ हैं, वो नारायण स्वरुप ही हैं।
पर लगभग लगभग हर व्यक्ती ये बात भूला हुआ है।
जो उसके दु:ख का कारण है।

इस अनन्त ब्रह्माँण्ड़ को आप एक ऐसा अनन्त शरीर जानो जिसकी कोई आकृती नहीं बनाई जा सकती इसलिए वो परब्रह्मँ निराकार कहा जाता है।

वही हैं शिवजी, शिवजी तमोगुँण को धारण करके स्वयम् को अहँकार जगत के रुप में अन्तरिक्ष स्वरुप हो प्रकट हैं, जिस अन्तरिक्ष में ब्रह्मँदेव हर ब्रह्माँण्ड़ को रचते हैं।

ब्रह्माँ जी उसी परमात्माँ स्वरुप विष्णूजी के बुद्धी हैं, जिससे संसार के हर जीवात्माँ को बुद्धी मिलती है।

शिवजी भी उसी विष्णुजी के स्वरुप हैं जिन्हें हम संहारकर्ता कहते हैं।
उनके पुर्ण स्वरुप के दर्शन करें:


भगवान विष्णु जी जीवात्माँओं के परब्रह्मँ स्वरुप हैं, इसलिए उन्हें क्षीर सागर में लेटे हुए योगनिद्रायुक्त दिखाया जाता है, वो जीवात्माँ के प्रतीक परमात्माँ हैं, इसलिए अपनी ही बुद्धी व अहँकार के रचना को देखते रहते हैं, और जब जहाँ धर्म की हानि होती है, वहाँ प्रकट होते हैं।


पर श्री हरि: तक पहुँचने के लिए व्यक्ती को बाहर नहीं अन्दर देखना चाहिए क्युँकि नारायण ते परमधाम का मार्ग जीव के हृदयकमल में स्थित जीव के अन्दर आत्मा रुप से है। उसे क्षीर सागर कहते हैं, इतना जान लेने पर फिर और कुछ जानने को शेष नहीं रहता।



एक छोटी सी कहानी है: click here

11 June, 2020

कृष्ण की चेतावनी

  


वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।
मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को,
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान् हस्तिनापुर आये,
पांडव का संदेशा लाये।
‘दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे।
दुर्योधन वह भी दे ना सका,
आशिष समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।
हरि ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान् कुपित होकर बोले-
‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।
यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें।
‘उदयाचल मेरा दीप्त भाल,
भूमंडल वक्षस्थल विशाल,
भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,
मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।
दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,
सब हैं मेरे मुख के अन्दर।
‘दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,
मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,
चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,
नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।
शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,
शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।
‘शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,
शत कोटि विष्णु जलपति, धनेश,
शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,
शत कोटि दण्डधर लोकपाल।
जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,
हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें।
‘भूलोक, अतल, पाताल देख,
गत और अनागत काल देख,
यह देख जगत का आदि-सृजन,
यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, इसमें कहाँ तू है।
‘अम्बर में कुन्तल-जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख।
सब जन्म मुझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।
‘जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,
साँसों में पाता जन्म पवन,
पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,
हँसने लगती है सृष्टि उधर!
मैं जभी मूँदता हूँ लोचन,
छा जाता चारों ओर मरण।
‘बाँधने मुझे तो आया है,
जंजीर बड़ी क्या लाया है?
यदि मुझे बाँधना चाहे मन,
पहले तो बाँध अनन्त गगन।
सूने को साध न सकता है,
वह मुझे बाँध कब सकता है?
‘हित-वचन नहीं तूने माना,
मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,
अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।
‘टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,
बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,
फण शेषनाग का डोलेगा,
विकराल काल मुँह खोलेगा।
दुर्योधन! रण ऐसा होगा।
फिर कभी नहीं जैसा होगा।
‘भाई पर भाई टूटेंगे,
विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,
वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे,
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।
आखिर तू भूशायी होगा,
हिंसा का पर, दायी होगा।’
थी सभा सन्न, सब लोग डरे,
चुप थे या थे बेहोश पड़े।
केवल दो नर ना अघाते थे,
धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे।
कर जोड़ खड़े प्रमुदित,
निर्भय, दोनों पुकारते थे ‘जय-जय’!

Written by रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar)

07 June, 2020

A Short Note on Engineering

Engineering :- A short note 
- Written on 6th June 2013
- Modified on 6th June 2020

"हम हैं तो जान है, हम नहीं तो ये दुनिया वीरान है।"

1. 🌞 सुबह-सुबह हम अपने घर के पंखे, बल्ब, टीवी, कम्प्यूटर या लेपटॉप चलाते हैं या फिर बंद करते हैं।



ये सभी उपकरण हमारे electrical engineering से जुड़े हैं।

2. अपने दैनिक जीवन में कहीं-कहीं हमने लोगों को सुर्य किरणों और गोबर गैस(bio-mass) से बिजली उत्पन्न करते देखा है। इन्हें renewable source of energy कहा जाता है।

Definition of Renewable Energy: Renewable Energy is energy that is collected from renewable resources which are naturally available or can be restored. 
Example: Wind, Solar, Geothermal, hydropower and biomass.

Solar Electricity Generation

Biomass Electricity Generation

ये सारे हमारे electrical engineering से जुड़े हैं।

3. Stepping out? कहीं बाहर जाना है? तो हम मोटरसाइकिल, कार एवं अन्य वाहनों का उपयोग करते हैं। इन सभी वाहनों को चलाने के लिए ईंधन की जरूरत होती है, जिन्हें हम non-renewable source of energy कहते हैं।

ये सारे वाहन हमारे electrical engineering से जुड़े हैं।
अगर बात की जाए बिजली या बैटरी से चलने वाले वाहनों की, तो वहां भी electrical engineering ही है। जैसे electric engine train, electric bike or car, etc.


Definition of Non Renewable Energy: 
Sources that cannot be restored in our lifetime.
Example: Fossil fuels - coal, petroleum and natural gas.

4. हम घर बैठे अपने टेलिविजन, रेडियो या मोबाइल पर अपना मनचाहा कार्यक्रम देखते या सुनते हैं। ये भी हमारे electrical and electronics engineering से ही जुड़े हैं।


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बिना बिजली के संसार की हम कल्पना नहीं कर सकते हैं। यह कह सकते हैं कि बिना बिजली के हम अधूरे हैं, हमारी जिंदगी अधूरी और अंधेरी है।
Life is not possible without electricity.

इसलिए यह कहना उचित है:

"हम हैं तो जान है, हम नहीं तो ये दुनिया वीरान है।"

यह हमारा अपना देश है, जिसे भारत/हिन्दुस्तान कहा जाता है। जहां हर देशवासी एक परिवार के जैसे रहते हैं। जैसे जब कभी भी कहीं कोई संकट में होते हैं, तो उसकी सहायता करने के लिए देश का हर एक व्यक्ति उसके साथ खड़ा होता है। बलात्कार, देशद्रोह, या ऐसे कई उदाहरणों में ऐसा देखा गया है। यह हमारा कर्तव्य भी है और देशहित के लिए जरूरी भी।

ऐसे में हम कह सकते हैं कि

"हर एक फ्रेंड जरूरी होता है।" चाहे वो E&E, E&C, CS, IS, Civil or Mech engineering से जुड़े हों.. #Airtel

हमारे देश के विकास के लिए हमें सब की जरूरत होती है। यही हमारे देश की एकता है। 

Hum/हम का मतलब है "We Engineers". Showing "Unity".
All for the development of our nation. 🇮🇳


------ Thank You ------

06 June, 2020

मधुमक्खी


यदि मधुमक्खी पृथ्वी से गायब हो गयी तो इंसानों के पास जीवित रहने के लिए बस चार साल बचेंगे।

मधुमक्खी


मधुमक्खी, जिसके बारे में इंसान भलीभांति परिचित है। यह गांव, शहरों, कस्बो इत्यादि जगहों पर पाई जाती है। यूं तो मधुमक्खी एक शांत स्वभाव का जीव है लेकिन जैसे इसे खतरा महसूस होता है तो यह हमला करने से भी नहीं चूकती और इनका हमला इतना खतरनाक होता है जिससे कई बार इंसानों की जान भी चली जाती है।


1. मधुमक्खी ही एकमात्र ऐसा जीव है जिसके द्वारा शहद तैयार किया जाता है। मधुमक्खी नहीं होती तो यह शहद भी नहीं होता।




2. पूरे विश्व में मधुमक्खियों की 20,000 से ज्यादा प्रजातियाँ पाई जाती है।

3. विश्व में मुख्य रूप से मधुमक्खियों की 4-5 प्रजातियां ही ऐसी है जो शहद का निर्माण करती है।

4. मधुमक्खी धरती पर अकेली ऐसी किट है जिसके द्वारा बनाया गया भोजन मनुष्य द्वारा खाया जाता है।

5. मधुमक्खियां 1 किलो शहद बनाने के लिए लगभग 40 लाख फूलों का रस चुसती हैं।

6.  एक स्वस्थ मधुमक्खी का जीवनकाल लगभग 45 दिनों का होता है।

7. मधुमक्खियों के दो पेट होते हैं जिनमें से एक का उपयोग यह खाना खाने के लिए व दूसरे का उपयोग फूलों का रस इकट्ठा करने में करती हैं।

8. मधुमक्खियों के झुंड में एक रानी होती है जिनके आदेश का पालन अन्य सभी मधुमक्खियां करती हैं।

9. मधुमक्खियों का छत्ता HEXAGONAL आकार का होता है।


10. कुत्तों के जैसे मधुमक्खियों में भी सूंघने की तीव्र छमता होती है। इनमें 170 तरह के सूंघने वाले receptors होते हैं, जबकि मच्छरों में 79 तरह के होते हैं। Bees sense of smell is 50 times better than that of dogs.

11. धरती पर मौजूद सभी जीव-जंतुओं में से मधुमक्खियों की भाषा सबसे कठिन है। 1973 में 'Karl von Frisch' को इनकी भाषा को समझने के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था।

12. मधुमक्खियों की उड़ने की तीव्रता 15 किलोमीटर प्रति घंटे की होती है।

13. केवल मादा मधुमक्खी ही शहद बना सकती है और ढंक मार सकती हैं। नर मधुमक्खी का जीवन सिर्फ sex के लिए ही होता है और सेक्स के बाद उनकी मृत्यु हो जाती है।

14. शहद हजारों साल तक खराब नहीं होता। यह एकमात्र ऐसा फूड है जिसके अंदर जिंदगी जीने के लिए सभी आवश्यक चीजें पाई जाती है। जैसे: enzymes(oxygen), vitamins, minerals, water, pinocembrin, etc...



11 May, 2020

Happy Mother's Day

माँ शब्द के अर्थ को शब्दों की सीमा में बांधना संभव नहीं है।


भारतीय संस्कृति में जननी एवं जन्मभूमि दोनों को ही माँ का स्थान दिया गया है।
मानव अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति जन्मभूमि यानी धरती माँ से, तो जीवनदायी आवश्यकता की पूर्ति जननी से करता है।

मनुष्य से लेकर पशु एवं पक्षियों तक को आत्मनिर्भर, स्वावलंबी एवं कुशल बनाने के लिए उनकी माँ उन्हें स्वयं से अलग तो करती है परंतु उनकी सुरक्षा के प्रति हमेशा सचेत रहकर अपने ममत्व को बनाए रखती है। परंतु ठीक इसके विपरीत कई बार मानव स्वयं अपने बढ़ते बुद्धि विकास के कारण अपनी सुरक्षा एवं आवश्यकता के प्रति स्वार्थी होकर माँ और उसकी ममता के प्रति उदासीन हो जाता है। फिर वह अपनी पूर्ति के लिए जननी और जन्मभूमि दोनों का दोहन तो करता है परंतु उनके प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करना भूल जाता है। जो व्यक्ति अपने इन कर्तव्यों का पालन करता है वो स्नेह, ममत्व की छाँव में रहकर सद्गुण, संस्कार, नम्रता को प्राप्त करता है। वह अपने जीवन में समस्त सुखों और जीवन लक्ष्यों को प्राप्त कर ऊँचाइयों को पा लेता है। वहीं ऐसे व्यक्ति जो अपने कर्तव्यों के निर्वहन में मातृशक्ति को, उसके स्नेह, ममत्व को उपेक्षित कर उन्नति का मार्ग ढूँढने का प्रयास करते हैं, वे जीवन भर निराशा के अलावा कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाते।

माँ अनंत शक्तियों की धारणी होती है। इसीलिए उसे ईश्वरीय शक्ति का प्रतिरूप मानकर ईश्वर के सदृश्य माना गया है। माँ के समीप रहकर उसकी सेवा करके, उसके शुभवचनों, शुभाशीष से जो आनंद प्राप्त किया जा सकता है वह अवर्णनीय है। अपने दिए स्नेह के सागर के बदले माँ बच्चों से कुछ नहीं चाहती। वह हर हाल में केवल बच्चों का हित सोचती है, खुद को मिटाकर भी। इसलिए अपनी ओर से हम उसे कभी दुःख न दें, यही हमारा कर्तव्य होना चाहिए।

03 May, 2020

Maharana Pratap and Chhatrapati Shivaji Raje Bhosale



Most important fact should be considered while writting that Resources for Maharana Pratap are less available compared to Shivaji Maharaj.

But still lets have comparative analysis.

1. Maharana Pratap (Indian king) lived 57 years of life with 25 years as king of Mewar state.
While Chhatrapati Shivaji Raje Bhosale (Indian king) lived 50 years with only 8 years as king.

2. Territorial states of Maharana and Shivaji were Mewar and Sahyadris with extensions in western Maharashtra, Karnataka, Goa, Gujrat and Tamil Nadu respectively.
I think Shivaji must have greater territorial area. But Shivaji actually created base of unpredicted Maratha empire.
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3. In terms of forts Shivaji maintained 300+ forts. Many forts were built and revitalized by him.
In case Mewar state forts were less  in number due lack of mountainous regions like western Ghats.
Aravalis are there. But much limited.

4. Earlier Resources Maharana got the already established and well managed state where as for Shivaji there was only Pune jahagiri and not a single fort.
Shivaji started from scratch while Maharana was having extensive Administrative facilities, huge army and all necessary equipments.
Shivaji built very powerful army by going through single by single person.
This was most difficult task for him to persuade local peoples to trust him and stand against the mighty Mughals, Adilshahi, Nijamshahi and Govalkonda states.
Sowing seeds of independant state in the minds of the people to catch their inner fire for state which will be for peoples and of the peoples. i.e. रयतेचे राज्य.
And which resources do he possessed? The first fort (Torana) he conquered was just with few mavle(मावळे/मावले) at his hand.

5. In terms of administration his Ashtapradhan mandal(अष्टप्रधान) is comparable to modern system of council of ministers. Though it already existed earlier, under his reign it got true sense.
It was motivated with welfare purpose and hence stands with distinct identity.

6. Diplomacy: I think Maharana is failed king on this agenda as he rejected five missions of Delhi. The partial successful fifth mission was ended by his rejection to visit delhi. Now here Shivaji also visited Agra as per treaty of Purandar with Mirza Raje Jaisingh.
Agra darbar incident is well known and it stands for his deep planning and understanding loopholes in the enemy place. Otherwise it should have been end of Shivaji.
Here Shivaji was concerned for people to visit Agra and hence their state unlike Maharana.

7. The Guerrilla warfare strategy had reference in both timelines but for Shivaji, he thoroughly researched and extensively used it to fight against enemies.
There is no any other king comparable to him.
See examples of Afjal khan  incident.(bringing him to Pratapgad, visiting him in tent, attractive tent structure and thoughtfully placed his peoples in jungle of Javali to attack enemy army very fastly, looting their fighting equipment)

8. Place of common people in state
Now consider pre Haldigarhi war situation of Maharana. What was background? He destroyed region upto Chittor to prevent Mughal access to food and fodder.
For Shivaji, he attacked Shahistekhan who was destroying Pune area, looting peoples, destroying their agricultural lands and hindu temples so that Shivaji should come out from his hideout.
What shivaji did? He directly attacked Shahistekhan in Pune.
In one Adnyapatra(letter by king) he guides army not to enter or march through any standing crop of rayat/people. If it happens, compensation should be paid to that person. Further he says for any stays of army, food-fodder must be bought by paying proper cost and not for free.
Please I am sorry but Maharana did very brave act of never bowing in front of Mughals but his purposes were narrow, very medieval in nature to save his kingdom and there is absence of common people in his policies.

9. State nature   Thats why Shivaji is inspiration of modern values of freedom, of fearlessness and fighting bravely for welfare of people.
Now Both were hindu kings but Shivaji never sacrificed people for sake of religion only even when it came to dealings with Muslim kings, hence he was also tolerant, secular hindu king.
Even Aurangzeb declared jihad in later phase of his life to expand Mughal empire but not Shivaji.
Bhagwat gita sanctioned deaths for dharma establishment but Dnyaneshwari based on Bhagwat gita said change people's mind and killing them is unnecessary. Thats what shivajis principle is.

10. Navy
Shivaji is known as leader/father of Modern navy. For this he brought french specialist and asked his peoples to learn such skills from them.

11. Seal of state/Royal seal
 Royal seal of Shivaji which read, "This is the royal seal of Shivaji, son of Shahaji. This royal seal is for the welfare of people. This seal (the rule of the seal) will grow like the new moon grows"






I say what is supreme than this and not a single king in India's history matches this level of wisdom and care towards people having peoples will and active support except The Great King ASHOKA.
While most kings were busy in showing there bravery and incarnations through such seals.

12. Salaries. He started paying in cash to all peoples under him to prevent any curruption and also ending jahagiri system atleast during his times.

13. Peoples loyalty
Shivaji is undiminishing example of peoples loyalty.
When Siddi Jauhar encircled Vishal gad fort, there was new shivaji to deal with him and to allow safe passage for origional one.
What was motive?
"There will be thousands of people to fight and to die for such king. But there should be such king. We cant lose you Maharaj. You must go".
And he remained loyal to these words, always being ray of beacon against darkness of slavery, foreign forced rule against people's will, fighting till the last moment.

14. Women: Shivaji prevented his mother Jija Bai against going to Sati/ Suttee (widow self-immolation) which was common during his times. Though there were multiple wives of him.
Mother of Chhatrapati Sambhaji Maharaj died earlier who was raised by (considered as low caste) kunabi maratha woman, even with her milk also.

Important: Shivaji Maharaj was criticized for his loots of Surat but let me remind you, kings destroyed their own territories for prventing enemy but he just went for money to build his state of people.(this is British view of Shivaji)

Other factors:

1. Justice He was very strict in following right practice and adherence to principles.The story of Patil of Ranjha is very famous who was close relative of Shivaji. He punished him by cutting his hands for rape of woman.

 2. Revenueolicy in drought hit areas. He offered much relief to farmers by remissioning taxes.

 3. Unfortunately he was also victim of Varna Vyavastha.Some Brahmans criticized him as low caste and rejected him as Kshatriya raja preventing him to be king. So he invited Gaga Bhatt from Kashi.(This whole coronation is major subject of debate e.g. Ambedkar's position is very different)

4. During Purandar incidence of Mirza Raje, there were also people who were doing yadnya Vidhi for victory of Mirza Raje for eg at Nashik. So there were lot of enemies for him with different faces and against his state like Chandrarao More of Javali.


P.S. I was passionate while writting about Shivaji. So if you find something more than real, pls correct.