फोटो: निठारी कांड का मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली (ऊपर), मोनिंदर सिंह पंढेर (नीचे)। दाएं डी-5, पंढेर की कोठी।
निठारी कांड: लंबे समय तक टल सकती है फांसी, कोली की मेरठ जेल से हुई वापसी!
लखनऊ/नोएडा. बच्चों के नरकंकाल मिलने से जुड़े निठारी कांड में सुरेंद्र कोली की फांसी फिलहाल 29 अक्टूबर तक टली है। लेकिन माना जा रहा है कि उसके बाद भी इसे टाला जा सकता है। इस बीच, कोली को मेरठ जेल से वापस गाजियाबाद के डासना जेल पहुंचा दिया गया है। कोली के खिलाफ 16 मामले हैं। इनमें से 11 की सुनवाई अभी भी चल रही है। उसके वकील ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर कहा है कि इन मामलों में जब तक सुनवाई पूरी हो नहीं जाए, तब तक सजा पर रोक लगाई जाए। कोली के मालिक और निठारी कांड के आरोपी मोनिंदर सिंह पंढेर के खिलाफ दर्ज मामलों पर भी अंतिम फैसला आने तक कोली की फांसी की सजा पर तामील नहीं करने की अपील की गई है। फिलहाल 28 अक्टूबर को इस मामले में अगली सुनवाई होनी है।
इस समय जमानत पर चल रहा मोनिंदर सिंह पंढेर ही उस कोठी नंबर डी-5 का मालिक है, जहां से करीब आठ साल पहले बच्चों के साथ दरिंदगी की कई कहानियां सामने आई थीं। कोली के फांसी के फंदे के करीब पहुंचने पर dainikbhaskar.com की टीम निठारी गांव पहुंची। वही निठारी गांव जहां के कई बच्चे ऐसे गायब हुए कि कभी नहीं मिले। पास के नाले से उनके कंकाल ही बरामद हुए।
इस दरिंदगी के भुक्तभोगी परिवारों और उनकी पीड़ा के साझीदार बने पड़ोसियों ने बताया कि असली नरपिशाच तो पंढेर था। उनके मुताबिक पंढेर का स्वभाव बेहद सौम्य व सरल था। इसी वजह से उन्हें कभी उस पर शक नहीं हुआ। तब भी नहीं, जब वे उसकी कोठी पर कई संदिग्ध गतिविधियां होते हुए देखते थे।
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नोएडा के निठारी गांव में साल 2006 में पंढेर के घर में बच्चों के कंकाल मिलने का मामला सामने आया था। सीबीआई को जांच के दौरान मानव हड्डियों के हिस्से और 40 ऐसे पैकेट मिले थे, जिनमें मानव अंगों को भरकर नाले में फेंक दिया गया था। नोएडा सेक्टर-31 में पंढेर की कोठी डी-5 के सामने रहने वाले धोबी ने बताया कि उसने कई बार कोठी में एंबुलेंस और डॉक्टरों की टीम को आते और काली पन्नी में कुछ ले जाते देखा था।
इस धोबी परिवार की बच्ची ज्योति (10) भी निठारी कांड की भेंट चढ़ गई थी। इस परिवार का कहना है कि पंढेर की कोठी में अक्सर नर्सों के साथ डॉक्टर आते थे। उनके साथ एंबुलेंस भी होती थी। नर्सें अपना मुंह ढंके रहती थीं।
ज्योति की मां सुनीता का कहना है कि मोनिंदर सिंह पंढेर की कोठी में दो डॉक्टरों और चार नर्सों का आना-जाना लगा रहता था। वे दो गाड़ियों से आते थे। उनके साथ एंबुलेंस भी होती थी। जब उन्होंने नौकर सुरेंद्र कोली से बार-बार डॉक्टरों के आने की वजह पूछी, तो उसने बताया कि घर में माताजी (पंढेर की मां) बीमार हैं। उनकी रूटीन चेकअप के लिए डॉक्टर आते हैं, जबकि कोठी में कभी कोई बूढ़ी औरत नहीं दिखती थी।
ज्योति का भाई अर्जुन उन लोगों में शामिल है, जिन्होंने सबसे पहले कोठी में नरकंकालों और कटे सिरों को देखा था। उसके मुताबिक, कोठी के अंदर का नजारा दहला देने वाला था। पन्नियों में कटे हुए सिर रखे थे। बोरे कटे हुए हाथ-पैरों से भरे पड़े थे। खास बात यह थी कि कोई भी शव पूरा नहीं था, किसी के पेट का हिस्सा गायब था, तो किसी की आंखें गायब थीं।
पीड़ित परिवार के लोगों और प्रत्यक्षदर्शी धोबी परिवार ने शक जताया कि मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली मानव अंगों की तस्करी करते थे। इस बात के पीछे उनकी दलील है कि कोठी के अंदर और बाहर नाले से मिलने वाले शवों के बीच का हिस्सा गायब था। किसी भी शव का गुर्दा, सीना और पसलियों की हड्डियां नहीं मिलीं। कटे हुए सिर मिलते थे, लेकिन उनमें आंखें गायब रहती थीं। इससे आशंका जाहिर होती है कि मानव अंगों की तस्करी की जाती थी।
ज्योति की मां सुनीता ने बताया कि मामले के खुलासे के बाद उन्हें कोली के शातिरपने का अहसास हुआ। इससे पहले ऐसे कई मौके आए जब उन्हें शक हुआ था, लेकिन कोली हर बार उन्हें गच्चा दे गया। उन्होंने बताया कि एक बार कपड़ा प्रेस करने के दौरान उन्हें मोनिंदर के कपड़ों पर खून के छींटे मिले थे। पूछने पर कोली ने बताया था कि साहब चिकन लेने गए थे। उसी दौरान खून के छींटे पड़ गए थे।
ज्योति के पिता छब्बूलाल के मुताबिक, उन्हें कभी भी अहसास नहीं हुआ कि मोनिंदर पंढेर और सुरेंद्र कोली ही मासूमों का हत्यारा है। उसने बताया कि सुरेंद्र कोली दुकान पर मोनिंदर के कपड़े प्रेस कराने आता था। यदि वे प्रेस किए कपड़े देने जाते भी थे, तो कोली उन्हें कोठी के गेट पर ही रोक लेता था और कपड़े लेकर अंदर चला जाता था।
सुरेंद्र कोली बहुत ही सरल स्वभाव का था। उसकी बातों से कभी शक नहीं हुआ। अक्सर कोठी के सामने खड़ा रहता था। मोनिंदर भी अपने कुत्ते को टहलाने के लिए निकलता था। वह ज्यादा बातचीत नहीं करता था, लेकिन कोठी में अखबार पढ़ते हुए अक्सर दिख जाता था।
अपनी आठ साल की बेटी रचना को खोने वाले पप्पूलाल ने बताया कि जब वे मोनिंदर की कोठी में घुसे थे, वहां नर कंकाल और कटे हुए सिर बिखरे पड़े थे। इसके बावजूद वहां बदबू बिल्कुल नहीं थी।
अक्सर विदेश दौरे करता था मोनिंदर सिंह पंढेर
मोनिंदर सिंह पंढेर का एक बेटा विदेश में रहता है। इसी बहाने वह लगातार विदेश जाता रहता था। इस मामले में उसे मिली जमानत का मुख्य आधार भी यही था कि जिस समय ये वारदातें हुईं, उस समय वह विदेश में था।
पीड़ित परिवार भी मानते हैं कि वह अक्सर विदेश जाया करता था, लेकिन उनका कहना है कि वह विदेश अपने बेटे से मिलने नहीं, बल्कि इंटरनेशनल मार्केट में अंगों की तस्करी करने जाता था। पप्पूलाल का कहना है कि मोनिंदर पंढेर ही असली आरोपी है।
मामला खुलने के बाद जिन लोगों ने कोठी के अंदर शवों को देखा था, उनका कहना है कि शवों से बदबू नहीं आ रही थी। कोई भी शव सड़ा नहीं था। इससे साफ जाहिर है कि कटे हुए अंगों में कोई केमिकल मिलाया गया था। इस वजह से वे खराब नहीं हुए थे। ऐसे में, अंगों की तस्करी के लिए ही उन्हें लंबे समय तक केमिकल मिलाकर सुरक्षित रखा गया होगा।
इस बारे में dainikbhaskar.com ने किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के एनॉटोमी विभाग के डॉ. नवनीत से बात की। उनका कहना था कि लाश को सुरक्षित रखने के लिए केमिकल बाजार में आसानी से मिल सकते हैं, लेकिन उन्हें विशेषज्ञों के निर्देशन के बिना उपयोग में नहीं लाया जा सकता।
डॉ. नवनीत ने बताया कि शव को सुरक्षित रखने के लिए जो केमिकल तैयार किया जाता है, उसमें फार्मोलिन, एल्कोहल, ग्लिसरीन और थाइमॉल का उपयोग होता है। फॉर्मोलिन एक तीखी गंध वाली गैस होती है। यह शव को नष्ट होने से बचाने में मदद करती है। साथ ही, कोशिकाओं को मरने नहीं देती है। वहीं, शव की बाइंडिंग में एल्कोहल सहारा देता है। शव को मुलायम रखने में ग्लिसरीन मदद करता है।
थाइमॉल से शव में नहीं लगती है फफूंद
थाइमॉल शव में फफूंद नहीं लगने देता है। फार्मोलिन, एल्कोहल, ग्लिसरीन और थाइमॉल को मिलाकर कम से कम सात से नौ लीटर केमिकल तैयार किया जाता है। इसको इंजेक्शन के जरिए शव की रक्तशिराओं में पहुंचाया जाता है। इससे चार महीने तक शव को सुरक्षित रखा जा सकता है। यदि शव को लंबे समय तक सुरक्षित रखना है, तो उसे फिर केमिकल टैंक में रखा जाता है।
हड्डियों को साफ करने में हाइड्रोजन परऑक्साइड की मदद
हड्डियों को साफ करने में हाइड्रोजन परऑक्साइड की मदद
शव की हड्डियों पर किसी भी तरह के केमिकल का प्रयोग नहीं किया जाता है। यदि केमिकल लगा दिया जाए तो हड्डियां भुरभुरी हो जाती हैं। हड्डियों को साफ करने के लिए और उनमें से गंदगी निकालने के लिए हाइड्रोजन परऑक्साइड का प्रयोग किया जाता है। इसके बाद हड्डियों को चमकीला बनाने के लिए उसमें वार्निश का लेप कर दिया जाता है। इसके लेप से हड्डियां टूटती नहीं हैं।
जांच पर भरोसा नहीं, भगवान पर है
पीड़ित छब्बूलाल ने बताया कि मामले का खुलासा होने के बाद पुलिस ने सभी पीड़ितों को थाने बुलवाया था। वह भी गया था। वहां पर मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली ने सबके सामने कबूला था कि उन्होंने ज्योति को मारा है। पुलिस ने इसकी रिकॉर्डिंग भी कराई थी।
छब्बूलाल को इस मामले में हुई जांच पर भी भरोसा नहीं है। उनका कहना है कि पंढेर ने पैसे के दम पर ठोस जांच नहीं होने दी और जमानत ले ली। उनकी पत्नी सुनीता ने उम्मीद जताई कि भगवान हमारे साथ कभी अन्याय नहीं होने देगा।
सुनीता ने बताया कि पुलिस इस मामले में शुरू से लापरवाही करती रही थी। जब उनकी बेटी गुम हुई थी, तो वह पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराने पहुंची थी। उस समय पुलिस ने शिकायत दर्ज नहीं की। लगभग एक साल बाद मामला खुलने के बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी, जब उनकी बेटी ज्योति के कपड़े और चप्पल मोनिंदर के घर पर मिले थे। मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली नहीं, मोनिंदर पंढेर है। सीबीआई पंढेर को बचा रही है।
निठारी कांड में अपनी बेटी रचना (8) को खोने वाले पप्पूलाल का भी कहना है कि नौकर अकेले लाश में केमिकल नहीं मिला सकता है। पूरे मामले में मोनिंदर सिंह पंढेर ही मुख्य आरोपी है।
कानूनी विशेषज्ञों ने भी पंढेर की जमानत पर उठाए सवाल
रिटायर्ड जज एके तिवारी ने मोनिंदर पंढेर को जमानत दिए जाने पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि कोई भी अभियुक्त पुलिस की गिरफ्त में आने या सरेंडर करने पर यही कहता है कि वह मौका-ए-वारदात पर मौजूद नहीं था। पंढेर के मामले में भी यही बात सामने आई है।
सीबीआई ने भी उसके तर्क को मान लिया कि वह घटना के वक़्त ऑस्ट्रेलिया में था। उन्होंने कहा कि यदि कोली ने ही सभी हत्याएं की थीं, तो उसने ये हत्याएं एक दिन में तो की नहीं होंगी। इस दौरान पंढेर भी अपने घर आता-जाता रहा होगा। ऐसा हो ही नहीं सकता कि उसे कोली के इन कामों का पता नहीं चला हो।
मोनिंदर पंढेर को बीते तीन अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत दे दी थी। उसे चार मामलों में जमानत मिल चुकी है। इन मामलों में उसका नौकर सुरेंद्र कोली सह आरोपी है। कोली को 13 फरवरी, 2009 को सीबीआई कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी।
मृतक ज्योति की तस्वीर के साथ पिता छब्बूलाल और मां सुनीता
इलाहाबाद होईकोर्ट से पंढेर को मिल चुकी है जमानत
4 अगस्त, 2014 इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निठारी कांड से जुड़े पांच नाबालिग लड़कियों के अपहरण, बलात्कार और हत्या से संबंधित मामलों में आरोपी मोनिंदर सिंह पंढेर को जमानत दे दी। जस्टिस भारत ने पंढेर को पायल, पिंकी, अंजलि, मधु और एक अन्य नाबालिग द्वारा दायर मामलों में जमानत दे दी। पंढेर को भले ही जमानत मिल गई हो, लेकिन उसके जेल से बाहर आने की संभावना नहीं है, क्योंकि उसके खिलाफ हत्या के कम से कम आठ अन्य मामले अब भी लंबित हैं।
कोली को फांसी दिए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने 29 अक्टूबर तक लगा रखी है रोक
12 सितंबर को निठारी कांड में मौत की सजा पाए सुरेंद्र कोली की फांसी पर सुप्रीम कोर्ट ने 29 अक्टूबर तक रोक लगा दी है। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 28 अक्टूबर की तारीख तय की।
पहले भी टली थी कोली की फांसी
कोली को पहले 7-12 सितंबर के बीच फांसी पर लटकाया जाना था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने छह सितंबर की आधी रात एक आदेश जारी कर उसकी मौत पर आगामी एक हफ्ते के लिए रोक लगा दी थी। दरअसल, कोर्ट ने संविधान पीठ के उस फैसले के मद्देनजर रोक लगाई थी, जिसमें मृत्युदंड के दोषियों की पुनर्विचार याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई करने का निर्णय दिया गया है।
एक नजर में निठारी कांड का पूरा घटनाक्रम
29 दिसंबर 2006 - नोएडा स्थित निठारी गांव में एक कोठी के पास बने नाले से आठ बच्चों के कंकाल बरामद हुए। कोठी मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और उसका नौकर सुरेंदर कोली गिरफ्तार।
30 दिसंबर - नाले से और कंकाल मिले।
31 दिसंबर - दो बीट कॉन्स्टेबल निलंबित।
5 जनवरी 2007 - यूपी पुलिस अभियुक्तों को नार्को परीक्षण के लिए गांधीनगर लेकर गई।
10 जनवरी - सीबीआई ने मामले की जांच का जिम्मा संभाला।
11 जनवरी - सीबीआई का पहला दल निठारी पहुंचा। मकान के निकट 30 और हड्डियां बरामद।
12 जनवरी - मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली से सीबीआई ने की पूछताछ।
20 जनवरी - यूपी सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में रिपोर्ट दाखिल की।
8 फरवरी - विशेष सीबीआई अदालत ने पंढेर और सुरेंद्र कोली को 14 दिन के लिए सीबीआई की हिरासत में भेजा।
12 फरवरी - राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामले के अध्ययन के लिए समिति का गठन किया।
22 मई - सीबीआई ने गाजियाबाद की अदालत में मामले में पहला आरोप पत्र दाखिल किया। मोनिंदर सिंह पंढेर पर हल्के आरोप लगाए गए, जबकि सुरिंदर कोली पर बलात्कार, अपहरण और हत्या के आरोप लगाए गए।
01 मई 2008 - निठारी हत्याकांड के तीन पीड़ितों के पिता मुख्य अभियुक्त पंढेर को हत्या और अपहरण के आरोपों से मुक्त करने को लेकर सीबीआई के खिलाफ अदालत पहुंचे।
29 दिसंबर 2006 - नोएडा स्थित निठारी गांव में एक कोठी के पास बने नाले से आठ बच्चों के कंकाल बरामद हुए। कोठी मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और उसका नौकर सुरेंदर कोली गिरफ्तार।
30 दिसंबर - नाले से और कंकाल मिले।
31 दिसंबर - दो बीट कॉन्स्टेबल निलंबित।
5 जनवरी 2007 - यूपी पुलिस अभियुक्तों को नार्को परीक्षण के लिए गांधीनगर लेकर गई।
10 जनवरी - सीबीआई ने मामले की जांच का जिम्मा संभाला।
11 जनवरी - सीबीआई का पहला दल निठारी पहुंचा। मकान के निकट 30 और हड्डियां बरामद।
12 जनवरी - मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली से सीबीआई ने की पूछताछ।
20 जनवरी - यूपी सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में रिपोर्ट दाखिल की।
8 फरवरी - विशेष सीबीआई अदालत ने पंढेर और सुरेंद्र कोली को 14 दिन के लिए सीबीआई की हिरासत में भेजा।
12 फरवरी - राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामले के अध्ययन के लिए समिति का गठन किया।
22 मई - सीबीआई ने गाजियाबाद की अदालत में मामले में पहला आरोप पत्र दाखिल किया। मोनिंदर सिंह पंढेर पर हल्के आरोप लगाए गए, जबकि सुरिंदर कोली पर बलात्कार, अपहरण और हत्या के आरोप लगाए गए।
01 मई 2008 - निठारी हत्याकांड के तीन पीड़ितों के पिता मुख्य अभियुक्त पंढेर को हत्या और अपहरण के आरोपों से मुक्त करने को लेकर सीबीआई के खिलाफ अदालत पहुंचे।
11 मई - गाजियाबाद की अदालत ने सीबीआई को हत्याओं में पंढेर की भूमिका की जांच करने का आदेश दिया।
6 सितंबर - निठारी हत्याकांड की शिकार एक लड़की के पिता जतिन सरकार का शव पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में नदी से बरामद।
01 नवंबर - सुप्रीम कोर्ट ने एक पीड़ित के रिश्तेदार के आरोपों पर सीबीआई को नोटिस भेजा। इसमें आरोप लगाया गया कि सीबीआई पंढेर को बचाने का प्रयास कर रही है।
13 दिसंबर - गाजियाबाद की विशेष सीबीआई अदालत ने मोनिंदर सिंह पंढेर के खिलाफ दो किशोरियों से बलात्कार तथा उनकी हत्या के मामले में आरोप तय किए।
6 सितंबर - निठारी हत्याकांड की शिकार एक लड़की के पिता जतिन सरकार का शव पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में नदी से बरामद।
01 नवंबर - सुप्रीम कोर्ट ने एक पीड़ित के रिश्तेदार के आरोपों पर सीबीआई को नोटिस भेजा। इसमें आरोप लगाया गया कि सीबीआई पंढेर को बचाने का प्रयास कर रही है।
13 दिसंबर - गाजियाबाद की विशेष सीबीआई अदालत ने मोनिंदर सिंह पंढेर के खिलाफ दो किशोरियों से बलात्कार तथा उनकी हत्या के मामले में आरोप तय किए।
12 फरवरी 2009 - विशेष सीबीआई न्यायाधीश ने पंढेर और कोली को बलात्कार और हत्या का दोषी ठहराया।
13 फरवरी 2009 - निठारी में सिलसिलेवार 19 हत्याओं में से एक रिंपा हलदार (14) के साथ रेप और उसकी हत्या के लिए विशेष अदालत ने पंढेर तथा कोली को मौत की सजा सुनाई।
11 सितंबर- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पंढेर को सुनाई गई मौत की सजा को दरकिनार करते हुए उसे बरी किया।
7 जनवरी- हलदार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोली की मौत की सजा बरकरार रखी।
4 मई- कोली को आरती प्रसाद की हत्या का दोषी पाया गया। उसे 12 मई को दूसरी बार मौत की सजा सुनाई गई।
28 सितंबर- कोली को मजदूर पप्पू लाल की आठ वर्षीय लड़की रचना लाल की हत्या के जुर्म में तीसरी बार मौत की सजा सुनाई गई।
22 दिसंबर- कोली को चौथी बार मौत की सजा सुनाई गई।
15 फरवरी, 2011- उच्चतम न्यायालय ने रिम्पा हलदार मामले में इस सजा की पुष्टि की।
27 जुलाई 2014- राष्ट्रपति ने दया याचिका खारिज कर दी। इसके बाद कोली को फांसी पर लटकाए जाने की न्यायिक प्रक्रिया को शुरू करने का रास्ता साफ हो गया था।
13 फरवरी 2009 - निठारी में सिलसिलेवार 19 हत्याओं में से एक रिंपा हलदार (14) के साथ रेप और उसकी हत्या के लिए विशेष अदालत ने पंढेर तथा कोली को मौत की सजा सुनाई।
11 सितंबर- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पंढेर को सुनाई गई मौत की सजा को दरकिनार करते हुए उसे बरी किया।
7 जनवरी- हलदार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोली की मौत की सजा बरकरार रखी।
4 मई- कोली को आरती प्रसाद की हत्या का दोषी पाया गया। उसे 12 मई को दूसरी बार मौत की सजा सुनाई गई।
28 सितंबर- कोली को मजदूर पप्पू लाल की आठ वर्षीय लड़की रचना लाल की हत्या के जुर्म में तीसरी बार मौत की सजा सुनाई गई।
22 दिसंबर- कोली को चौथी बार मौत की सजा सुनाई गई।
15 फरवरी, 2011- उच्चतम न्यायालय ने रिम्पा हलदार मामले में इस सजा की पुष्टि की।
27 जुलाई 2014- राष्ट्रपति ने दया याचिका खारिज कर दी। इसके बाद कोली को फांसी पर लटकाए जाने की न्यायिक प्रक्रिया को शुरू करने का रास्ता साफ हो गया था।
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